________________ षष्ठः सर्गः अन्वयः-यत्र अर्धकुचा ( कापि ) सखी 'समरः ते पयोधरे एव कुम्भे हरभीतिगुप् सन् नाबा खेलति किम् ?' इति सखीभिः ऊचे। टीका-यत्र सभायाम् अर्धश्चन्द्रः शशी ( कर्मधा० ) तस्य आभा शोभा (10 तत्पु०) इव आभा ( उपमान तत्पु० ) यस्य तथाभूतः ( ब० बी० ) यो नखाङ्कः ( कर्मधा० ) नखस्य करजस्य करजक्षतस्येत्यर्थः यः अङ्कः चिह्नम् (10 तत्पु० ) तत् चुम्वति गृह्णातीति तथोक्तः ( उपपद तत्पु० ) कुचः स्तन: (कर्मधा० ) यस्यास्तथाभूता (ब० वी० ) कापि सखी आली-'स्मरः कामः ते तव पयोधरे स्तन्यधरे, अथ च जलाशये ('पयः स्यात्क्षीनीरयोः' इति विश्वः / कुचे एव कुम्भे कलशे हरात् महादेवात् या- भोतिः भयम् (60 तत्पु० ) तस्याः सकाशात् ( आत्मानम् ) गोपायर्यात रक्षतीति तथोक्ता ( उपपद तत्पु० ) सन् नावा नौकया खेलति क्रीडति किम् ? इति सखीभिः आलीभिः सपरिहासम् ऊचे उक्ता। प्रियतमकृतनखक्षतोपलक्षितं सखीकुचमवलोक्य सखीनां तत्कुचे कुम्भस्य नखक्षतचिह्न च कामजलक्रीडार्थं नौकायाः कल्पना क्रियते // 66 // व्याकरण-पयोधरः धरतीति/धृ+ अच् ( कर्तरि) धरः पयसो धरः इति (10 तत्पु० ) 0 चुम्बि-चुम्ब् + णिन् ( कर्तरि / ऊचे वच् + लिट् ( कर्मवाच्य ) / ०गुप्/गुप् + क्विप् ( कर्तरि ) / अनुवाद-जहाँ अर्धचन्द्राकार नख (क्षत ) से चिह्नित कुचवाली (किसी) सखी को ( अन्य ) सखियाँ कह उठीं-'तेरे पयोधर ( दूधभरे ) कुच-रूपी पयोधर ( जल-भरे ) कलश पर महादेव के डर से ( अपनी ) रक्षा करता हुआ काम नौका से ( जल-) क्रीड़ा कर रहा है क्या ? // 66 // टिप्पणी-स्तनपर नखक्षत-चिह्न अर्ध-चन्द्राकार छोटी-सी किश्ती बन गई / उसके लिए कामदेव को जल-क्रीड़ा हेतु जलाशय चाहिए क्योंकि वह महादेव के तृतीयनेत्राग्नि से डरा हुआ है / एक वार जल जो गया था / जले हुए को शीतल जल अपेक्षित होता ही है। जलाशय मिलगया है सखी का पयोधर-रूपी कलश / फिर तो क्या था। वहाँ निर्भय हो खूब जल-क्रीड़ा अर्थात् नौका विहार करने लगा। भाव यह निकला कि मेरे नखक्षतचिह्नित पयोधर को देख किसे कामोद्रक नहीं होगा ? 'चन्द्राभ' में उपमा, पयोधर पर कुम्भत्वारोप में रूपक जो पय में श्लेषगभित है, 'और किम्' शब्द में उत्प्रेक्षा-इन सबका अङ्गाङ्गिभाव संकर हैं। 'सखी' 'सखी' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। मल्लिनाथ, विद्याधर