________________ नैषधीयचरिते आलिख्य सख्या: कुचपत्रभङ्गीमध्ये सुमध्या मकरी करेण / यत्रालपत्तामिदमालि ! यानं मन्ये त्वदेकावलिनाकनद्याः // 69 // अन्वयः--यत्र ( काचित् ) सुमध्या सख्याः कुचपत्रभङ्गीमध्ये करेण मकरीम् आलिख्य ताम् आलपत्-'हे आलि, त्वदेकाबलिनाकनद्याः इदम् यानम् ( अस्ति ) / टीका-यत्र सभायाम् काचित् सु = शोभनं मध्यम् उदरं यस्याः तथाभूता (प्रादि ब० वो० ) सुन्दरीत्यर्थः सख्या: आल्याः कुचयो: स्तनयोः या पत्राणाम् लतादलादीनाम् ( स० तत्पु० ) भङ्गयः रचनाः (10 तत्पु० ) तासां मध्ये मध्यभागे (प० तत्पु० ) करेण हस्तेन मकरीम् नक्रीम् आलिख्य चित्रयित्वा ताम् सखीम् आलपत् अबदत्-'हे आलि सखि ! तव एकावली एकयष्टिका ( 'एकावल्येकयष्टिका' इत्यमरः ) एकसूत्रगुम्फितमुक्तामालेत्यर्थः (10 तत्पु०) एव नाकनदो ( कर्मधा० ) नाकस्य स्वर्गस्य नदी गङ्गा. स्वर्गङ्गा मन्दाकिनीति यावत् ( 10 तत्पु० ) तस्याः यानं वाहनम् अस्तीति शेषः / पत्रभङ्गीमध्ये आलिखिता मकरी स्तनगतमौक्तिकमालारूपायाः स्वर्णद्याः वाहनमिव प्रतीयते इति भावः / / 69 // व्याकरण- भङ्गी/भञ्ज + इन्, कुत्व + ङीप् / मकरी मकर + ङीप् / यानम् यायतेऽनेनेति /या + ल्युट् ( करणे)। अनुवाद-जहाँ ( कोई ) सुन्दर कमर वाली युवति ( अपनी ) सखी के कुचों पर पत्र-रचना के मध्य में हाथ से मकरमत्स्यिका का चित्र बनाकर उसे बोल रही थी-'सखी! ऐसा लगता है जैसे यह तुम्हारी मोतियों की लड़ी-रूपी स्वर्गङ्गा की वाहन हो // 69 // टिप्पणी--प्राचीन काल में कस्तूरी आदि के द्रब से स्तनों, मुख आदि पर शोभार्थं फूल-पत्तियों को चित्रकारी की प्रधा स्त्रियों में प्रचलित थी। आजकल यह 'गोदने' के रूप में परिणत हो गई है। यहाँ स्तन पर चित्रकारी के बीच मगरमच्छी का चित्र ऐसा लग रहा था मानो वह स्तनों पर लटकी मुक्ता-लड़ी रूपी स्वर्गङ्गा की वाहन हो। स्वर्गङ्गा और मुक्ता-लड़ी दोनों श्वेत-वर्ण और लंबी होने से परस्पर साधर्म्य रखे हुए है। शास्त्रों में जैसे तत्तद् देवताओं के अपने-अपने वाहन अथवा सवारी का उल्लेख है, वैसे ही गंगा को 'मकरवाहिनी' कहा गया है अर्थात् वह मगरमच्छ पर सवार रहती है ( जैसे सरस्वती हंस पर