________________ नैषधीयचरिते त्यर्थः, अभीमभवा भीमभवा सम्पद्यमाना भवतीति तया मिथ्या-दमयन्तीभूतया दमयन्ती वेषधरयेत्यर्थः एकया युवत्या अलीक: मृषा नल इत्यलीकनलः (कर्मधा०) अनलीकनल: अलीकनलः सम्पद्यमाना कृता इत्यलीकनलीकृता या माली सखी ( कर्मधा० ) तस्याः कण्ठे गले ( 10 तत्पु० ) अर्थात् नलवेषधारिण्याः सख्याः कण्ठे दौहदिकेन मालाकारेण उपनीता आनीता मधूकानां मधूकवृक्षपुष्पाणां माला हारः ( 10 तत्पु० ) तस्य अदृश्य-नलस्य दृक्पथे दृशः पन्थाः विषय इति तस्मिन् ( उभयत्र 10 तत्पु० ) तदृष्टिगोचरतायामितियावत् शालीनम् शालीनतासहितं ___ व्याकरण-भीमभवीभवन्त्या, नली-कृताली–दोनों में अभूततद्भाव में च्वि प्रत्यय है। दोहदिक: वृक्षाणां दोहदे = उर्वरके नियुक्त इति दोहदि + ठक्. ठक को इक, आदि अच् की वृद्धि / दृक्पथे पथिन् शब्द को समासान्त अप्रत्यय / शालीन शालाप्रवेशमहंतीति शाला + ख, ख को ईन [ 'शालीन०' 5 / 2 / 20] / अनुवाद-जहाँ नकली दमयन्ती बनी एक तरुणी ने नकली नल बनाये गए सखी के गले में आली द्वारा लाई हुई महुवे के फूलों की माला उन ( नल ) की दृष्टि के सामने लजाते-लजाते डाल दी / / 61 // टिप्पणी-दमयन्ती के मनोविनोद के लिए सखियाँ ऐसे नाटक रचा करती थीं, नहीं तो विरह में उसका समय कटना कठिन हो रखा था। नल तो अदृश्य ही थे, लेकिन अपने सामने सहेलियों की ऐसी लीलायें देखते जा रहे थे। ध्यान रहे कि नल के गले में ही दमयन्ती द्वारा माला डलवाने में कवि का यही संकेत है कि अन्त में वरमाला नल के ही गले में पड़ेगी, किसी और दूसरे के नहीं। 'भवी' 'भव' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / 'लीक' 'लीकृ' 'लीक' में एक से अधिक वार वर्णों की आवृत्ति होने से छेक न होकर वृत्त्यनुप्रास ही है / चन्द्राभमानं तिलकं दधाना तद्वन्निजास्येन्दुकृतानुबिम्बम् / सखीमुखे चन्द्रसमे ससर्ज चन्द्रानवस्थामिव कापि यत्र / / 62 / / अन्वयः-यत्र का अपि ( सुन्दरी ) चन्द्राभम् आभ्रम् तिलकम् चन्द्रसमे सखीमुखे तद्वन् ...बिम्बम् दधाना चन्द्रानवस्थाम् इव ससर्ज / टीका--यत्र सभायाम् का आपि काचित् सुन्दरी चन्द्रवत् शशिवत् आभा ( उपमान तत्पु० ) शोभा यस्य तथाभूतम् (ब० बी० ) आभ्रम् अभ्रसम्बन्धि तिलकम् ललाटे चन्द्रकार-गोलचिह्नम् चन्द्रेण समे सदृशे ( तृ० तत्पु० ) सख्याः