________________ नैषधीयचरिते टिप्पणी-सहेलियां सौन्दयं में काम पत्नी रति से टक्कर ले रही थी; इसीलिए तो यह भ्रम हो रहा था कि मानो यह कामदेव का अन्तःपुर हो। कल्पना होने से उत्प्रेक्षा है, जो वाचक शब्द के अभाव में गम्य है। शब्दालंकारों में 'रसैः' 'लासैः' ( रलयोरभेदात् ) छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। कण्ठः किमस्याः पिकवेणुवीणास्तिस्रो जिताः सूचयति त्रिरेखाः / इत्यन्तरस्तूयत यत्र कापि नलेन बाला कलमार पन्तो / / 59 // अन्वयः-यत्र कलम् आलपन्ती का अपि बाला नलेन किम् अस्याः त्रिरेखः कण्ठः पिक-वेणु-वीणाः तिस्रः जिताः सूचथति ?' इति अन्तः अस्तूयत / ____टीका-यत्र यस्यां सभायाम् कलम् मधुरं यथास्यात्तथा आलपन्ती रागालापं कुर्वाणा का अपि काचित् बाला युवति: नलेन-'किम् अस्याः बालायाः तिन: रेखाः यस्मिन् तथाभूतः ( ब० वी० ) कण्ठः गल: कम्बुग्रीवेत्यर्थः पिक: वेणुः मुरली च वीणा विपंची चेति वीणाः ( द्वन्द्व ) तिस्रः (कर्म) जिताः पराभूताः सूचयति बोधयति ?' इति अन्तः मनसि अस्तूयत स्तुता। गले तस्या रेखात्रयम् पिकादिपराजयसूचकचिह्न मेति भावः // 59 // व्याकरण - सरल है। अनुवाद - जहाँ मधुर आलाप भरती हुई किसी तरुणी की नल ने मन ही मन यों प्रशंसा की। 'तीन रेखाओं वाला इसका गला कोयल बाँसुरी तथा वीणा इन तीनों को पराजित किया हुआ सूचित करता है क्या ?' // 59 // टिप्पणी-सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार तीन रेखाओं से चिह्नित ग्रीवा कम्बुग्रीवा कहलाती है। यह शुभ लक्षण माना जाता है, किन्तु कवि इन रेखाओं पर यह कल्पना कर रहा है। किन्तु मानो इसके गले में ये पिक, वेण और वीणा के पराजय के सूचक चिह्न हों, सामुद्रिक लक्षण नहीं : इससे यहाँ उत्प्रेक्षा है, जिसका वाचक पद 'किम्' है। 'वेणु' 'वीणा' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / ध्यान रहे कि 'यत्र' शब्द से आरम्भ हुआ यह श्लोक विशेषणरूप है जिसका पूर्व श्लोक में 'सभा' से सम्बन्ध है। इसे हम विशेषणात्मक उपवाक्य ( Adjectival Clause ) कहेंगे / एसे उपवाक्य आगे के चौदह श्लोकों तक चले गये हैं। एतं नलं तं दमयन्ति ! पश्य त्यजातिमित्यालिकुलप्रबोधान् / / श्रुत्वा स नारीकरवर्तिसारीमुखात्स्वमाशङ्कत यत्र दृष्टम् / / 60 / /