________________ षष्ठः सर्गः अनुवाद-पैदल चलते हुए यह (राजा नल) देर तक घूम-फिर कर किसी न किसी तरह ( बड़ी कठिनाई से ) वैदर्भी-द्वारा सुशोभित, गगन चुम्बी महल में पहुंचे। टिप्पणी - महलों की कतारों में नल को भला क्या पता होना था कि दमयन्ती का महल कौन सा है। पहले कभी देखा ही नहीं था। इसलिए देर तक विरहातुरता में इधर-उधर उन्हें चक्कर काटने पड़े / एक ही कारक नल के साथ संचरण, परिभ्रमण और आसादन-अनेक क्रियाओं का अन्वय होने से कारक-दीपक है। 'चरचिरं' 'कथं कथं', 'साद साद' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / सखीशतानां सरसैविलासैः स्मरावरोधभ्रममावहन्तीम् / विलोकयामास सभां स भैम्यास्तस्य प्रतोलीमणिवेदिकायाम् / / 58 // अन्वयः - नलः तस्य प्रतोलीमणिवेदिकायाम् सखी-शतानाम् सरसै: विलासैः स्मरावरोध-भ्रमम् आवहन्तीम् भैम्याः सभाम् विलोकयामास / टीका-नलः तस्य प्रासादस्य प्रतोल पुरोमार्गे प्रवेश वर्मनीत्यर्थः या मणिवेदिका ( स० तत्पु० ) मणिखचिता वेदिका वेदी तस्याम् ( मध्यमपदलोपी स०) सखीनाम् आलीनाम् शतानि ( 10 तत्पु० ) शतशः सखीनामित्यर्थः सरसैः शृङ्गाररससहितेः विलासै: लीलाभिः स्मरस्य कामस्य योऽवरोधः अन्तःपुरम् तस्य भ्रमम् भ्रान्तिम् आवहन्तीम् जनयतीम् भैम्याः दमयन्त्याः सभाम् सभामण्डपम् बाह्यप्रकोष्ठमिति यावत् विलोकयामास // 58 // व्याकरण-वेदिका वेदी एवेति वेदी + क ( स्वार्थे ) + टाप् ह्रस्व / सखी-सखि + ङीप, यास्काचार्य के अनुसार 'सखायः कस्मात् ? समानख्यानवन्तः' इति समान + Vख्या + डिन् समान को स (निपातित)। विलास वि+ Vलस् + घञ् ( भावे ) / स्मरः स्मृ + अप् ( भावे) काम प्रिय-प्रियतमाविषयक एक स्मृति ही तो है। अवरोधः अवरुध्यन्तेऽत्र महिलाः इति अव + रुध् + घञ् ( अधिकरणे)। अनुवाद-नल ने उस ( महल ) के प्रवेश-मार्ग में मणिमय चौतरे पर ( बना), सैकड़ों सहेलियों के रसीले विलासों से कामदेव के अन्तःपुर का सा भ्रम उत्पन्न करता हुआ भैमी का सभामण्डप (हॉल) देखा // 58 //