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रामायण mmmmmmmmmmmmer
प्रसिद्ध थे गोतम गोत्र से, श्रुत ज्ञान मे ऊंचा आसन था। हितकारी प्राणी मात्र को, श्री महावीर का शासन था । थे सर्वज्ञ ब्रह्मज्ञानी, और तीन काल के ज्ञाता थे। सिद्धार्थ भूप के राजकुवर, नन्दी वर्धन के भ्राता थे । विशेष ज्ञान के लिये पढ़ो, तुम इनके जीवन चरित्र को । शान्त वीर रस धरताके, देखो शुद्ध ज्ञान पवित्र को ॥ कुछ प्रश्न पूछने के हेतु, एक रोज श्री गौतम स्वामी। नमस्कार कर यो बोले, जहाँ बैठे थे अन्तरयामी ।
दोहा भगवन् ! इस ससार में, कौन है पद प्रधान । किस पद से निश्चय मिटे, आवागमन तमाम ॥ अवतार कौन कहलाते है, और क्या क्रम इनके होने का । क्या सभी परस्पर एक रंग, या फरक है सोने सोने का ।। वर्तमान मे कौन कौन है, कर्म मैल धोने वाले । थे भूतकाल मे कौन भविष्यत् मे, कौन कौन होने वाले ॥ कितने कितने अन्तर से, इस काल के सब अवतार हुए। कितने है भवधारी इनमे, कितने भवसागर पार हुए।
और काल का भी कुछ भाग पृथक करके स्वामी दर्शावेंगे। मम इच्छा पूरण करने को, कृपया अमृत वर्षावेगे ।
दोहा नम्र निवेदन शिष्य का, सुन करके भगवान । कृपासिन्धु फिर इस तरह, करने लगे वरखान ।। तीर्थकर पद को कहा, सब ही ने प्रधान । पाकर यहाँ विशेषता, पहुँचे पह निर्वाण ।