Book Title: Jain Ramayana Purvarddha
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Bhimsen Shah

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Page 444
________________ ४०४ रामायण शील की खातिर तजो प्राग, ऐसी आज्ञा है श्रीजिन की । अशुभ कर्म जब उदय आ गया, तो फिर आस करू' किन की ॥ मौत के आगे डर क्या है, आत्म शक्ति दिखलाऊं मैं अब के वोला जो कुछ मुख से, तो कोरी बात सुनाऊं मैं || 1 दोहा (रावण) य सीता रोना तेरा, डाले मम सिर धूल । प्रसन्न चित्त मुख से जरा, वर्षा प्यारी फूल || दोहा (सीता) I मुह पीछे को फेर के, बोली त्यौरी तान । अधम महा पापिष्ठ तू, बिल्कुल पशु समान ॥ आश्चर्य की बात गधे भी, इतर फुलेल फिरें टोहते । आज तक दुनिया मे देखे, कुरड़ी पर फिरते खोते ॥ उल्लूवत् नजर नही आता, तुझको तो आँख बना जाकर । प्रबल सिंह की ले खुराक, गीदड़ कहाँ छिप सकता धा कर ॥ मिले धूल में सब लंका, शेखी क्या जता रहा मुझको । मै नारी नहीं नागिनी हूं, तज अभी साफ कहूँ तुझको || धिक्कार तेरी शूरमताई, जा मुझे चुराकर लाया है । गौरवहीन काम नही करता, क्षत्रिय कुल का जाया है || गाना नं ० ६३ ( सीता की रावण को फटकार ) चल हट रल्लू गधे हैवान, बेहूदे गंवार दहकानी ||टेर || अक्ल के शत्रु दुर्गुण धाम, देख मैं किस नर की हूं वाम | चढ़ें लंका पर लक्ष्मण राम, होवे काफूर तेरी राजधानी ॥ १॥ पै प्रबल सिंह की नार, देवर लक्ष्मण अति वलधार ।

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