Book Title: Jain Ramayana Purvarddha
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Bhimsen Shah

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Page 447
________________ सीता हरण wenn voru wwwwwwwwwww कर्म शुभाशुभ जीवो को, कैसा सुख दुख दिखलाते है। सम ज्ञान दर्श चरित्र विन, यह नष्ट नहीं हो पाते है । दोहा सीता बैठी बाग में, रावण लका मांय । लक्ष्मण की श्री राम जी, करने गये सहाय ॥ भाग दूसरा हुआ खतम. सीता का हरण हुआ इसमे । कोई छूटे कर्म बिना भुगते, यह शक्ति बतलाओ किसमे ॥ रामचन्द्र का हाल शेष, सब पढो तीसरे हिस्से मे। धन्य 'शुक्ल' वह पुरुष धर्म पर, कायम रहे परिषह में।। * पूर्वार्धस्य द्वितीयो भागः समाप्तः 8 STM 4EOS S N UER. C 145

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