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जरदोहा ऐसा मन मे सोच कर, दशकंधर बलवीर ।
देव रमण का ही हुआ, निश्चय ध्यान आखीर ॥ सामन्त मन्त्री स्वागत करने, उधर सामने आते है।
गरा और विशेष सजी, जय जय को ध्वनि सुनाते हैं । छोड़ सभी को सुरति भूप ने, देव रमण को लाई है। शुभ रक्ताशोक वृक्ष नीचे, श्री जगदम्बा बैठाई है ।। सब मेवा और मिष्टान्न थाल, वहां थे भोजन के लगे हुये। जहाँ मीठे स्वर से कोयल बोले, फूल बाग मे खिले हुये ॥ त्रिजटा नाम आदि दासी, सव आगे पीछे फिरती है । फल-फूल हार गजरे अद्भुत, ला ला सेवा में धरती हैं ।। शक्ति नही ज़बां लेखनी मे, सब सेवा का गुन गान करे । अदभुत वस्त्र क्या आभूषण, लाकर सारे सामान धरे ॥ सब लंका भर में खुशी हुई, नृप नार अनुपम लाया है । महा कष्ट के बारे चले सिया पे, रावण मन हर्षाया है ।।
दोहा इच्छाएं सब तज दई, राम चरण में ध्यान । शुक्ल प्रतिज्ञा सिया क्री, सुनो लगाकर कान ।।
दोहा (सीता) लक्ष्मण और श्रीराम का मिले न जब तक क्षेम । खान पान का तब तलक, है मेरा भी नेम ॥ प्रवन्ध बाग का ठीक बना, लंका को भूप सिधारा है । सामन्त मन्त्री अधिकारी, क्या जन समूह संग भारा है ।।