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बालि-वंश
मात-पितु की स्नेह दृष्टि शिक्षा गुरुजन की सभी, कर्मोदय सब छिप गई कुकर्म भरमाता मुझे ॥४॥ शुक्ल अब बस फैसला मैने अटल यह कर लिया, चारित्र मोहनी कर्म व जकड़ना चाहता मुझे ||५|| वशीकरण के मन्त्र है, दुनिया में यह चार । रूप, राग और नम्रता, सेवा भली प्रकार ||
पूर्व जन्म का था सम्बन्ध, कुछ रूप का पारावार नहीं । कुछ रसना मीठी श्रीकंठ की नरमी का कोई पार नही ॥ कुछ प्रेम तमाचे के समान, दुनिया मे लगता सार नहीं ।
समझो सभी नमूने से, ज्यादा करते विस्तार नही || सब कारण समझे पद्मा ने, व्यवहार नहीं अब सधने का जो दिल मे प्रेम बढ़ा बैठी, अब प्रेम नहीं वह हटने का || बिना मुझे इस रस्ते से कोई मार्ग आता नजर नही । संयोग है पिछले जन्मो का निश्चय, है इसमे कसर नहीं ॥
दोहा
ऊंच नीच सब सोच कर, बैठी तुरत विमान । श्रीकंठ मन सोचता, बना सब तरह काम ||
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दोहा
यह पुष्पोत्तर की सुता, पद्मा रूप अपार । पुण्योदय से मिल गई, इन्द्राणी अवतार ॥ इन्द्राणी अवतार कि जिसका, मिलना अति कठिन है । याचन से देता नहीं भूप का, हमसे उल्टा मन है |
किन्तु मानव के आगे, यह कौन क्रिया दुष्कर है। होगा जो देखा जावेगा, अब करो काम जो दिल है ||
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