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रामायण
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छन्द (लक्ष्मण)
अब नहीं समय विवाह का, बोले अनुज सुन लीजिये । परखेंगे वापिस न कर, जाने हमें अब दीजिये || हो विदा उज्जैन को, सेना ले सिंहोदर गया । धर्म के प्रताप से, नृप का उपद्रव टल गया ॥ राम लक्ष्मण भी विदा हो, ध्यान चलने में किया । विश्राम करते उस जगह, जहाँ पर कि थक जाती सिया ||
कल्याण भूप दोहा
मलयाचल आगे बढ़े, जब श्रीराम नरेश । चलते हुवे आया वहाँ निर्जल नामा देश || तृषा सीता को लगी, लिया जरा विश्राम । पानी लाने के लिये, लक्ष्मण धाया ताम ॥ एक सरोवर जल भरा, देखा अधिक अनूप । जल क्रीडा करने वहाँ आया है एक भूप ॥ कुबेरपुर का अधिपति, कल्याण नाम सुकुमाल । देख सुमित्रानन्द को खुशी हुआ तत्काल । उसी समय कर प्रेमभाव, लक्ष्मण से हाथ मिलाया है || फिर करता अनुज विचार, लगे औरत दिल में मुस्काया है । कल्याण भूप ने लक्ष्मण जी का स्वागत किया प्रति भारा है || और दिया आमन्त्रण चलो महल, मुख से यूं वचन उचारा है ॥