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रामायण
हट यहां से क्यों इधर उधर, चमकाती डोले बिन्दी है। तुझ जैसी नहीं और कोई, दुनियां मे नारी गन्दी है ।।
दोहा (लक्ष्मण ) पीठ दिखा यहां से जरा, शर्म न तुझे लगार । __ भरा मुल्क चारों तरफ, करो देख भर्तार ।। करो देख भरि यहां पर, चले न चाल तुम्हारी । उल्लू जैसी शक्ल गधी, भी चाहे शेर सवारी ।। मायाचारिणी मिथ्याभाषिणी, बनती राजदुलारी। मारू हन्टर अभी अक्ल, आजाय ठिकाने सारी ।।
कहां दुःख दिया आन के, सताती जान जान के । चपल चालाक बाक है, और कहीं जा करो ठिकाना यहां न कोई गाहक है ।
दोहा कोरी कोरी जब सुनी, लक्ष्मण की फटकार ।
शूर्पणखां को आ गया, सहसा रोष अपार ॥ जैसे नागिन फण मारे, ऐसे दो हाथ मारती है। कुछ बना नहीं काम समझ, पुत्र का मोह चितारती है। बोली तूने ही मेरे शंबूक, का शीश उतारा है। अब तभी श्वांस लेऊंगी मै, कटवा कर गला तुम्हारा है ।।
दोहा (लक्ष्मण) हम भी बैठे है यहां, इसी लिये तैयार ।
कह देना आवें जरा, हो करके हुशियार ।। जा उन उनको दे भेज यहां, जिनको परभव पहुँचाना है। है सूर्य वंशी यहां राम लखन, तूने क्या हमको जाना है ।