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ব্যমূলি
३६३ दोहा (सीता) हे स्वामिन दिल मे जरा, कुछ तो करो विचार । तुम्हे बुलाने के लिये, लक्ष्मण रहा पुकार ।।
गाना नं०६० (सीता का राम से) जावो जावो जी महाराज, लक्ष्मण ने सिंह नाद सुनाया ॥टेर।। प्रेमऐसा जिनका तुम साथ, दिवस कहो दिवस रात कहो रात । तजे सुख राज पाठ सब ठाठ, बनो मे संग तुम्हारे आया ॥१॥ - जहाँ पर पड़ा कष्ट कोई आन, अगाड़ी हुआ आप सिरतान । सुना जब चले बनो मे राम, अवध का खाना तक न खाया।॥१॥ __ हमारी सेवा करी दिन रात, समझा तुझे पिता मुझे मात । नजर नीची न ऊँची बात, कभी न मुह की तर्फ लखाया ॥॥ _ लिया शत्रु ने देवर घेर, जल्दी जावो मत लावो देर । फेर मे पड़े फेर से फरे, समय बीता न हाथ कभी आया ॥४॥
मानो प्रीतम मेरी बात, करो शत्रु की जाकर घात । मिले ना तुमको ऐसा भ्रात, पसीने की जां खून बहाया ॥५॥ किया तुमने उनसे संकेत, पड़ा अब काम बीच रण खेत । हर घड़ी शब्द सुनाई देत, शुक्ल यह दिल मेरा घबराया ॥६॥
दोहा (राम) यही सोच मैं कर रहा, श्रय सीता मनमाय दुविधा के अन्दर फसा, कहूं तुझे समझाय ॥
गाना नं. ६१ लखन को जीते कोई, साक्षी यह मन देता नही। जाऊँ अकेली छोड़ तुमको, यह भी मन कहता नहीं ॥१॥ सोचो यह शत्र का इलाका, घोर फिर उद्यान है। हाल क्या तेरा बने, कुछ भी कहा जाता नहीं ।।२।।