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सीता हरण
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सीता हरण
गाना नं० ६२ [रावण और सीता का सम्वाद-गाना ] (रावण) कुछ नीर पिलादे, प्यासा मै आया तेरे द्वार पर ।
कुछ ख्याल कर उपकार कर ।। टेर।।। (सीता) विमान पास फिर देर लगी क्यो, जाते निज स्थान पर ।
तू कौन कहां से आया, (रावण) लंकापुर से ।। (सीता) क्या जल कही तुझे न पाया ? (रावण) प्या निज कर से । (सीता) जलाशय हरजां निर्मल जल, झरने बहे पहाड़ पर ॥१॥ (रावण) वह जल हम नही पीते है, (सीता) किस कारण से। (रावण) बस निर्मल पर जीते है, (सीता) तो कारण से ॥ (रावण) जल्द पिलावो देर न लावो, कांटे पड़े जबान पर ॥२॥ (सीता) पीलो यह धरा हुआ है, (रावण) दो अन्दर से। (सीता) शीतल ही भरा हुआ है, (रावण) फिर दो कर से ॥ (सीता) हम नहीं आते बाहर कुटी से, मत ज्यादा तकरार कर ॥३॥ (रावण) क्या प्यासे जावे दर से, (सीता) ऐसा न कहो। (रावण) तो भर दो लोटा कर से,