Book Title: Jain Ramayana Purvarddha
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Bhimsen Shah

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Page 436
________________ ३६६ रामायण (सीता) प्यासे न रहो ॥ (रावण) किस कारण फिर देर लगाई, जल्दी से उपकार कर ॥४॥ (सीता) कैसा है मनुष्य हठीला, (रावण) खुदगर्ज न हा । (सीता) रुक बैठा जैसे कीला, (रावण) जो मर्जी कहो ॥ (सीता) पीलो वह जल का लोटा तुम, मैं नहीं आती द्वार पर ॥५॥ (रावण) इससे नहीं प्यास बुझेगी, (सीता) यह और पड़ा। (रावण) इससे तो और जगेगी, (सीता) मुझे भ्रम पड़ा । (रावण) यदि पिलाना है तो पिला प्रेम जल वरना बस इंकार कर ।। (सीता) तू जल पीने नहीं आया, (रावण) हाँ समझे गई। (सीता) तुझे काल घेर कर लाया, (रावण) वाह खूब कही ।। (सीता) भाग यहाँ से वरना मारे, रघुवर तुझे पछार कर ॥७॥ (रावण) मैं हूं लंका का वाली, (सीता) हो सकता है। (रावण) तू बन मेरे घर वाली, (सीता) क्या बकता है ।।। (रावण) जो मर्जी कहो शब्द फूल सम, शोभे रसना सार पर ।।८।। (सीता) यह धड़ से शीश उड़ेगा, (रावण) क्या आफत है। (सीता) जब चिल्ले धनुष चढ़ेगा, (रावण) क्या ताकत है ।

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