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रामायण
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शब्द सुन सुन के कलेजा, आ रहा मुह की तर्फ । यदि सहायक न बनू यह, भी तो दिल चाहता नहीं ॥३॥ प्रेरणा तेरी ने सीता, फेर डाला मन मेरा। अब तो भाई के मिले बिन, दिल सबर लाता नहीं ॥४॥
दोहा
कर्मगति होकर रहे, क्रोड़ों करो उपाय । धनुष बाण श्रीराम ने, कर मे लिया सजाय ।। कुछ सीता के कहन से, कुछ प्रेरा सिंहनाद ।
पहिन कवच अब चल दिये, अरुणावत को साध ॥ बायां नेत्र श्रीराम का, चलते समय है फड़क रहा । दाहिना फड़के सीताजी का, यह देख कलेजा धड़क रहा ॥ दायें से बायें हिरण गये, और तीतर बायें बोल रहा । पीछे को शकुन हटाते हैं, यह रामचन्द्र मन तोल रहा ॥ अशुभ कर्म जब उदय होय, काफूर अक्ल बन जाती है । इस उल्ट फेर में आन फंसे, नहीं समझ बात कोई आती है । मन सोच रहे श्रीराम सिया को, अभी छोड़ कर आया हूँ। मै पता भ्रात का लू जल्दी, जाकर जिस कारण धाया हूं। यही बात मन सोच राम ने, आगे कदम बढ़ाया है। अवकाश सिया हरने का, पीछे दशकन्धर ने पाया है ॥ खुशी खुशी अब लपक-झपक, रावण कुटिया पर श्राया है। और भोली भाली शक्ल बना कर, ऐसे वचन सुनाया है।
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