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रामायण
VANAWAL
दोहा लंका को अब चल दई, शूर्पणखा तत्काल । रावण से कहने लगी, जो बीता सो हाल ।। तुम बैठे मैं लुट गई, भाई करो विचार । पहिले सुत मारा गया, अब मरता भर्तार ॥
छन्द वीर तेरे भानजे का सर, अलग धड़ से किया। दो मनुष्य जंगल मे हैं, डेरा निडरपन से किया ।। रोष कर तेरा बहनोई, लेके दल सारा गया । विश्वाश नहीं मुझको रहा, जीता के या मारा गया । चौदह सहस्त्र संग अकेला, वीर लक्ष्मण लड़ रहा । शेर जैसे बकरियों में, यों लपक के पड़ रहा ॥ सब खत्म कर देगा यदि, न आप वहाँ पहुंचे बीरन । फैल ऐसे जायगा, मानिन्द रवि जैसे किरण || अब तो गोते खारही, नेया मेरी मझधार है। डोब देना या बचाना, आपके अखत्यार है ।।
दोहा शूर्पणखा के बचन सुन, रावण करे विचार ।
मूर्ख जाति नारी की, सोच न जिसे लगार ॥ प्रथम तो इस दुष्ट बहन ने, कुल को दाग लगाया है। एक तुच्छ मनुष्य क्या खरदूषण, वह ही इसके मन भाया है। फेर नहीं यह आन गसी शादी मे, मुख दिखलाती है। अब गर्ज पड़ी तब पान खड़ी, नयनों से नीर वहाती है ।