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रणभूमि
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प्रारभिक ल्वर में हे भाई, औपधि जहर बन जाती है । और राग द्वेष मे अंधो को, शुभ शिक्षा कभी न भाती है।
दोहा (राम) बुद्धिमान् हो तुम लखन, हर फन मे होशियार । जाओ अव रणरंग से, करो अरि की छार ॥
रणभूमि
दोहा शीश नमा करके चले, सुमित्रा का लाल । या यो कहद चल दिया, खर दूषण का काल || जा ललकारा सामने, करी धनुष टंकार ।
मची खलवली फोज में, भाग हो गये चार ।। गड़गड़ाहट घनघोर शब्द, सुन सब दल का मन कांप पड़ा। यह क्या आफत आती है, खर दूपण का दिल हांप पड़ा। पाधि शक्ति तोड़ लखन ने, बाणो की झड़ी लगाई है। आंधी अगे जैसे तृणे, ऐसें सब फौज भगाई है। जैसे बादल व्योम बीच, दल मे योधा यो गर्ज रहा। या बालू के घर गेरण को, बारि वाह जैसे बरस रहा ।। शूर्पणखां ने देख हाल यह, दाता मेअगुली डाली है। फिर बोली हाय सितम लक्ष्मण, कर देगा सव दल खाली है।। बिजली के मानिन्द कड़क रहा, इससे अव कैसे पार पड़े। शक्ति हीन हो गए योद्धा सब, झांक रहे है खड़े खड़े ॥ विना वीर रावण के यहां न, पेश किसी की चलनी है। एक नपूते ने सबका हृदय, किया छलनी छलनी है।