Book Title: Jain Ramayana Purvarddha
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Bhimsen Shah

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Page 429
________________ रणभूमि ३८६ rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrnama नक्ष तेज यह रामचन्द्र के, हृदय मेरा हिलाते है । जो सजे खड़े वस्त्र शस्त्र से, काल रूप दिखलाते है ।। दोहा ( रावण ) आगे पैर बढ़े नहीं, पीछे घटता मान । गिरफ्तार चौला हुआ, बने किस तरह काम ।। जब तक बैठे है राम सामने, सिया हाथ न आयेगी। अव करू याद विद्या अवलोकिनी, भेद वही बतलायेगी । जनक सुता हर लेने का, यही एक ढंग निराला है । आगे बैठा शेर हटू, पीछे तो भी मुह काला है । दोहा अवलोकिनी विद्या तुरत, करि याद. भूपाल । आन खड़ी हुई सामने, लगी पूछने हाल ।। लगी पूछने हाल आज, किस कारण मुझे बुलाई । बतलाओ जो काम मेरे, लायक मै करने आई ।। मुश्किल से आसान करूं' जैसे बच्चे को दाई । उसी बात मे हूँ प्रसन्न, जो हो तुमको सुखदाई ।। दौड सभी कारण बतलाइये, आज मुझको अजमाइये। हाथ अपने दिखलाऊं, शक्ति के अनुसार काम जो हो, पूरा कर लाऊं ।। दोहा (रावण) काम आज ये ही मेरा, पाऊं सीता नार । और नहीं चाहना मुझे, करो यही उपकार ।।

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