Book Title: Jain Ramayana Purvarddha
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Bhimsen Shah

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Page 422
________________ ३८ रामायण SAAR दोहा (लक्ष्मण) जब तक जीए जगत् में, सेवक लक्ष्मण वीर । तब लग तुमको क्या फिकर, हे भाई रणधीर ॥ बस हाथ शीश पर धर दीजे, मैं जाने को तैयार खड़ा । और अभी दिखाता हॅू करके, देखो यह साफ मैदान पड़ा ॥ तब बोले राम अच्छा तुम जाओ, हम यहाँ पर रह जाते हैं । किन्तु एक बात हम और कहे, सुनता जा जरा सुनाते हैं | दोहा (राम) कह देना ललकार कर. पहले सुनलो बात । शस्बुक की हमने न की, जान बूझकर घात ॥ फिर भी गलती का खरदूपण, तुम दण्ड हमें दे सकते हो । शम्बुक की मृत्यु का योग्य, कोई हर्जाना भी ले सकते हो || यदि इस पर न ध्यान करें तो फिर मैदान में डट जाना । और किसी तरह भी अरि जन का, " · फिर धोखा भाई मत खाना || यह ज्ञात मुझे कोई दुनिया में, नहीं तुझे जीतने वाला है । फिर भी यह साथ में ले जाओ, महा वज्रमयी जो भाला है ॥ घिर जाओ कही शत्रुओं में तो, सिंह नाद शब्द करना मैं उसी समय आ जाऊँगा, तुम भय न कोई दिल मे धरना ॥ दोहा हंस कर बोले लखन जी, हे भाई रणधीर । नम्र निवेदन है मेरा, धरो हृदय में वीर ॥ दोहा (लक्ष्मण) चढ़ते जल में प्रवेश करे, वह अपने प्राण गंवायेगा । क्रोधातुर को शिक्षा देने वाला, निज काल बुलायेगा ||

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