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रामायण
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अद्भुत है लक्षण सारे शुभ, अनुपम दमक दिखाती हैं ।
और स्वर्गपुरी की इन्द्राणी भी, उसे देख शर्माती है। एक अगूठे की बराबरी, न तेरा रणवास करे ॥ नक्ष तेज अति पड़े हुवे, सब खिला चमन प्रकाश करे ।। आश्चर्य की बात गधे के, गल हीरो का हार पड़ा। एक रहे रखवाली उसकी, एक लड़े रण बीच खड़ा । रत्न चीज जितनी दुनियां में, सबकी सब वह तेरी है। तुम उसे बनाओ पटरानी, यह तीव्र भावना मेरी है ॥ सर्प बीन पर मस्त हुआ, जैसे निजफण लहराता है। कर्मोदय भूप कुमार्ग पर, चलने का ढग बनाता है ॥
दोहा जादू करके कर गई, शूर्पणखा प्रस्थान ।
विषय वर्धक वचन सुन, रावण हुआ गलतान ॥ परनारी का ध्यान जिस समय, जिस प्राणी को आया है। तो समझ लेवो कि बस, उसकी किस्मत ने चक्कर खाया है । कुल गौरव मिलाकर मिट्टी मे, अपयश का पिंड भराता है। और गुण वैभव की राख बनाकर, अन्त मे फिर पछताता है।
दोहा
परनारी पैनी छुरी, पॉच ठौर से खाय । फल किंपाक समान यह, दिल अन्दर धस जाय ॥ तन छीजे यौवन हरे, पत पंचो मे जाय।
जीवित काढ़े कालजा, मुआ नके ले जाय ।। घ्राणेन्द्रिय के वशीभूत हो, भंवरा प्राण गंवाता है। भिंच भिंच मरे फूल मे, पर नही उसे काटना चाहता है ।। स्पर्शेन्द्रिय के वश में होकर, गज बलिष्ठ तन को खोवे । रसनेन्द्रिय के पराधीन हो, मीन गहन जल में रोवे ।