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रणभूमि
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और कहती है दो मनुष्यो पर, चौदह हजार चढ़ धाये हैं। फिर भी बतलाती खतरा है, नहीं दो काबू में आये है ।। प्रथम तो यह ठीक नही, यदि है भी तो क्या हमे पड़ी। मर जाने दो उन दुष्टो को, रोने दो इसको खड़ी खड़ी ।। चीज नाश हो जाये तो, कुल का कलंक मिट जायेगा। यदि सम्मुख नहीं पीठ पीछे, कहते सो भी हट जायेगा। दो चार घड़ी सिर पीट पीट, कर अपने रस्ते जावेगी। किया कर्म जसा इसने, उसका वैसा फल पावेगी ।।
दोहा शूर्पणखा दिल सोचती, बना नहीं कुछ काम ।
बतलाऊ इसको वही, जो थी सुन्दर वाम ।। है महा लम्पटी इन बातो का, कान इधर झट लायेगा। कम से कम यह तो निश्चय है, एक बार वहां पर जायेगा। जैसे बीन बजाने पर बस, नाग मस्त हो जाता है। ऐसे ही मस्त करूं इसको, अब यही समझ मे आता है ।
दोहा ( शूर्पणखा ) लाज शर्म को छोड़ कर, बोली रावण साथ ।
अति आश्चय की सुनो, एक और है बात ।। नारी जिनके पास एक, सहस्राशु जैसे चढ़ा हुआ। - या मानो बनरूपी रजनी के गल चन्द्रमा पड़ा हुआ। स्फटिक रत्न जैसा तन है, जैसे साचे मे ढाली है। मानिन्द दामिनी के क्रान्ति, चालि गति हस निराली है।। नलकुमरी न तुलना करती, न उपमा कोई जहान मे है। अमृत यदि कुछ है दुनियां मे, तो उसकी एक जवान मे है ।।