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शूर्पणखा
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अनुचित कहती शब्द चली, पाताल लंक मे आई है। खरदूषण को शंबूक के, मारे की खबर सुनाई है।
दोहा ( शूर्पणखां) महा घोर अन्याय क्या, प्रलय होगया आज ।
एक लाल शंबूक बिना, सूना होगया राज ॥ हाय निर्दयी ने कैसे, शबूक की गर्दन काट दई ।
और बनचर जीवों को सब, टुकड़े टुकड़े करके बांट दई ।। कुछ मुझसे भी वह पापी, अनुचित छेड़ाखानी करने लगे। जब मैंने उनको धमकाया, तो लड़ने का दम भरने लगे ।।
दोहा
सुत मारा जिस दिन सुना, रोष गया तन छाय। उसी समय भूपाल ने, योद्धा लिये बुलाय ॥ चौदह सहस्र महायोद्धा, दंडकारण्य में आये हैं। महा गर्द गगन मे छाय गई, ऑधी से ज्यादा छाये हैं । सब देख हाल यह अनुज, भ्रात को रामचन्द्र समझाते हैं। अब सावधान हो जा भाई, शत्रु टिड्डी दल आते है ।
दोहा (राम) अय लक्ष्मण तुम यहां रहो, जनक दुलारी पास ।
अरि दल के आऊं अभी, उड़ाकर हौश हवास ॥ हाथ जोड़ लक्ष्मण बोले, महाराज विनती सुन लीजे । तुम रहो पास सीता जी के, मुझको रण मे जाने दीजे ।। मैंने ही कांटे बोए हैं, मै ही उनका मुंह तोड़ेगा। सब करू चपट मैदान धनुष, लेकर जब रण दौड़गा।