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निग्रन्थ मुनि
प्रहार पांचवे की नप ने, फिर सरपे चोट लगाई है। कुछ असर नहीं हुआ लक्ष्मण पर, यह देख सभा हर्षाई है।
दोहा राजकुमारी ने तुरत, पहिनाई वर माल । परणो अब पुत्री मेरी, यो बोलो भूपाल ||
अनुज कहे उद्यान मे, बैठे है श्रीराम ।
सेवक हूँ रघुवीर का, करू बताया काम || श्रीराम सिया लक्षमण जी है, सुन राजा मन मे हर्षाया। फिर विनय सहित तीनो को, अपने महलो के अन्दर लाया ।
अति प्रम से भोजन करवाकर, भूपति ने प्रेम बढ़ाया है। फिर आज्ञा ले श्रीरामचन्द्र जी, आगे को चल धाया है ।।
दोहा चलते-चलते आ गया, वंशस्थल गिरि देश । वंशस्थल पुर नगर मे । पहुचे रामनरेश ।।
निग्रन्थ मुनि
दोहा
नर नारी उस नगर के, देखे सभी उदास ।
पूछा तब श्रीराम ने, बुला मनुष्य एक पास ॥ कहे मनुष्य महाराज रात को, शब्द भयानक होता है।
और साथ एक तूफान चले, वह कष्ट सहा नहीं जाता है। दिन को यहाँ श्याम होते, कही और जगह जा सोते है । उस महा उपद्रव से नरनारी, बच्चे बढ़े रोते है ।।