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रामायण
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दोहा (शूर्पणखा) क्या मेरे ही भाग्य थे, फूटे इस जग मांय । विरह आपका हे कुवर, मुझसे सहा न जाय ।। गाना नं० ५५ (शूर्पणखा रानी का विलाप)
तर्ज-विहाग प्राण प्यारे लाडले सूरत, जरा दिखलाय जा। रोवे खड़ी अम्मा तेरी, इसको तो धीर बंधाय जा ॥१॥ कौनसी साधी कुवर, विद्या बता तो दे जरा। भोजन मै लाई पास तेरे, यह जरा सा खाय जा ।।२।। नौ मास रक्खा गर्भ मे, मैं लाल तुझको सुख दिया। क्या कहे अम्मा मुझे, इतना तो शव्द सुनाय जा ॥३॥ बारह वषे अति दुःख सहा, फिर खो दिये निज प्राण है। काटा है किसने सिर तेरा, यह तो जरा बतलाय जा ॥४॥
दोहा ५, शूर्पणखा ने इस तरह, किये बहुत विलाप ।
अब रोने से क्या बने, सोच किया फिर आप ॥ जिसने मारा राजकुंवर, मै उसकी खोज लगाऊंगी। जान का बदला जान ही लेकर, सुत का बदला पाऊंगी। कैसे पता लगे मुझको, दुर्जन को स्वाद चखाऊ मै । चिह्न देख कर पांवों का, अब उसका पता लगाऊ मै ॥
दोहा जिधर गया लक्ष्मण उधर, चली चरण चिह्न देख। नयनों से जल बह रहा, कर रही सोच अनेक ॥