________________ शूर्पणखा तू प्रातःकाल सदा उठकर, माता को शीश झुकाता था। और माता माता कह कर मेरा, हृदय कमल खिलाता था / / दोहा (शूर्पणखां) सिर पीटू छाती धुनू, हा शंबूक हा लाल / और बता किसको कहूं, बन से अपना हाल // __ गाना नं० 54 ( शूर्पणखा का विलाप ) { / तर्ज-बहर तबील छैया मैया को तजकर, किनारा गया, मेरी जान जिगर का सहारा गया। मुझे छोड़ अभागिन को तू चल बसा, और सर्वस्व कैसे विसारा गया // 1 // . मै तो आई खुशो से यहां दोड़ कर,. साथ लाया न जहर करारा गया / जिसको खाकर के मै भी जाती उधर, . जिस जगह मेरा बेटा प्यारा गया // 2 // हाय लटकता यह धड़ है पडा सिर उधर, इससे थर्रा कलेजा हमारा गया / अय बेटा करू तो करू क्या बता, ! मुझे जान जिगर आति मारा गया // 3 // सत जा साधन को विद्या कहा पेश्तर, जिससे कटकर के सिर यह तुम्हारा गया / 'कर चला गोद खाली कुबर मात की, सेरे घर का तो सारा उजारा गया // 4 //