________________
श्री स्कन्धकाचार्य चरित्र
३४६
wwwwwwwwwwwr
भयभीत हुए कई भव्य जीव, मुनियो को श्रा समझाने लगे। वोले आगे मत बढ़ो प्रभु, मृत्यु का भय बतलाने लगे।
दोहा ऐसे वचनो को सुना, स्कन्धक ने जिस बार । मुनि वीर गम्भीर यो, बोला वचन उचार ॥
गाना नं. ४६ ( स्कन्धकाचार्य का ) सत्य प्रचार मे यह, जान रहे या न रहे।
परोपकार मे शान, रहे या न रहे ॥१॥ फैला दूगा मै शिष्यो को, राष्ट्र भर मे ।
मिथ्या विप काटने मे, कान रहे या न रहे ॥२॥ ज्ञान दर्श चारित्र का, डंका बजाऊँ सारे।
पॉव पीछे न हटे, प्राण रहे या न रहे ॥३॥ भूले भटको को, बतावेगे जिनवाणी। ___साफ कह देगे यह सिर, जान रहे या न रहे ॥४॥ सर्वस्व लगा कर भी, करूं कर्तव्य पालन ।
खाने पीने का मुझे, ध्यान रहे या न रहे ॥५॥ हरगिज न डरेगे, किसी की धमकी से।।
। चाहे हाथ मे मैदान, रहे या न रहे ॥ ६॥ सुर नर मोक्ष तिर्यञ्च, नर्क है दुनिया मे।
आस्तिक धर्म रहे, इन्सान रहे या न रहे ॥ ७ ॥ सिद्ध ईश्वर, सच्चिदानन्द परमात्म ।
श्रान रह जाय अमिट, जान रहे या न रहे ॥८॥ शुक्ल शुभ ध्यान है, दो कर्मो को उडाने वाले । विन शुभ ध्यान के यह, जहान रहे या न रहे ।। ६ ॥