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Pune.
श्री Faraararर्य चरित्र
दोहा (सुगुप्त मुनि)
स्कंधक मुनि ने जब सुनी, पक्षान्ध की बात । गंभीर ऋषि कहने लगे, यो गौरव के साथ ॥ दोहा (स्कंधक)
पालक क्यो घबरा रहा, फिरे मचाता शोर । प्रवल सिह आगे नही, चले स्यार का जोर ॥ नही चले स्यार का जोर, यहाँ तो सारे शेर बबर है । क्या दिखलाता धौंस, मरण को जान हथेली पर है । शरतों का रख घर अपने, यहाँ सारे मुनि निडर है । धर्म बली देने को प्रभु ने दान बताये सिर है || जिस्म यह नहीं हमारा, गया कहाँ ध्यान तुम्हारा ।
सोच कर करो विचारा, सत्य धर्म कर ग्रहण मिटे, छाज्ञान तिमर तव सारा ॥
दोहा
इतनी सुनकर मन्त्री, जल बल हो गया ढेर । भृकुटि मस्तक डाल कर, लिए मुनि सब घेर || दोहा
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खदक दिल मे सोचता, यह कोई अभव्य विशेष । मुनियों को ढ़ करू, ढेकर के उपदेश ॥ ' दुर्जन को सज्जन करने का, भूतल मे कोई उपाय नहीं । घनघोर घटा कितनी वरसे, चातक की तृपा जाय नही ॥ बसन्त ऋतु मे सव हंसते, नहीं पत्र करीर के आता है ।
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भानु की इच्छा सब करते, पर उल्लू उसे न चाहता है ||
नागर के फल का अभाव, पीपल के फूल नहीं आता है । फणीयर को जितना दूध मिले, उतना ही चिप बन जाता है ।