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श्री स्कन्धकाचार्य चरित्र
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दोहा (सुगुप्त) हाल देख भूपाल का, गया कलेजा कांप । छाती पर से एक दम, गया जिस तरह सांप ॥ हो गया नृप का फक चेहरा, न शक्ति रही बदन में है। क्या बतलाऊ अब रानी को, बस यही सोच रहा मन मे है। लाचार कहा क्या बतलाऊ, गई डोर छूट नहीं हाथों मे ॥ यह महाघोर किया पाप आन, मैने वजीर की बातो मे ।
दोहा ( पुरन्द्रयशा) 'दुःख सागर मे मग्न हो, बहा रही जल नयन ॥ कहन लगी भूपाल से, रानी ऐसे बैन ।
गाना नं. ४६ (शोकाकुल रानी पुरन्द्र यशा का ) अय' पति तूने कराया, जुल्म यह अति घोर है। दुष्ट पालक सा अभव्य, दुनियां मे न कोई और है ।।१।। पाच सौ शिष्यो सहित, भाई मेरा खन्धक मुनि ।। पीलते-पीलते यंत्र मे हा, जिनको हो गया भोर है ॥२॥ उफ तलक किसी ने न किया, अन्धेर कैसा छा गया । जहां किसी को दुःख मिले, वहां पर तो मचता शोर है ॥३॥ माताये सुन मर जायेगी, जिनके थे यह शोभन कुवर । हाय उस दम वेदना, होगी सही किस तौर है ॥४॥ राज जन और फौज पल्टन, क्या किले नर नारी है। अब तो सब गारत बने, रहनी न यहां कोई ठौर है ॥५॥ अव सहूँ कैसे अतुल दुःख, जान भी जाती नहीं ।। मैने कर्म खोटे किये, आय के बल का जोर ॥६॥