________________
३६२
रामायण
"
यदि शुक्ल मुझ को पता होता अनर्थ हो जायगा । फिर पिया यह हाथ से, हरगिज न छुटती डौर है ||
दोहा (दंडक )
महा खेद मैने किया, कुछ भी नहीं बिचार | ऐसे पापी दुष्ट को दिये, सभी अधिकार ॥
गाना नं० ५० (दंडक का विलाप )
( अब मैं धरू, किस तरह धीर )
देख देख यह जुल्म भयानक, उठे कलेजे पीर ॥ टेक ॥ राज कुंवर खन्धक मुनि त्यागी, शूर वीर गम्भीर । फूल कमल से बदन पील दिये, घानी सकल शरीर ॥१॥ बिल - बिल रोवे रानी मेरी, जिस का खन्धक वीर । खबर सुनत ही प्राण तजेंगी, पीया जिनका तीर ॥२॥
ज्ञात मुझे होता नहीं रखता, ऐसा दुष्ट वजीर । ' बात सुनेंगे सेवक जिनके, लेगें कलेजे तीर ||३|| शुक्ल समय बीता नही आता, बहे नयनो से नीर । सब रोगों की एक औषधी, श्री जिन धर्म आखीर || ४ || दोहा (दंडक )
धिक ऐसे संसार को, और मुझे धिक्कार |
अब दिल मे यह ही बसा, तप संयम लेऊं धार ॥ इधर विचार किया नृप ने वहां, उपयोग देव ने लाया है । सब देख बाग का हाल उसी दम, क्रोध बदन में छाया है ॥ अग्नि कुमार उस सुर ने आकर, अग्नि तुरत लगाई है । देख प्रचंड मची ज्वाला, जनता मन में घबराई है ॥
&