________________
रामायण
wwwwwwwwwwwww मानिन्द समझो भ्रात की, करुणा यह दिल धर लीजिये। राम बोले जो कुछ कहा, सब आपने वह ठीक है। इसकी रक्षा के जिये, मम प्राण भी ना चीज है।
- इति स्कंधकाचार्य अधिकारः
-
-
-
--
दोहा शिक्षा दे जब मुनि चले, पड़े चरण श्रीराम । धन्य श्री जिन धर्म है, धन्य आपका नाम । धन्य आपका नाम ज्ञान, श्री जिनका बतलाया है। धन्य मात वह तात प्रभु, जिसने तुमको जाया है ।।
सार सभी नर तन, पाने का तुमने ही पाया है। सफल जन्म उनका जिनके, सम दम खम मन भाया है।
मुनि वहां से चल धाये, ध्यान तप जप चित लाये। प्रसन्न पक्षी तन मन से, रक्खा नाम जटायु, अब सीता पे रहे मग्न से ।।
दोहा
पक्षी का सुन्दर जिस्म, शोभे कलगी शीश । सीता से अति प्रेम है, रहे पास निशदीश ।। सिया राम रथ मे बैठे, लक्ष्मण सारथि बन जाता है। पक्षी उड़े अगाड़ी जिस दम, चलें सैर शोभाता है। पुरी अयोध्या के समान, दण्डकारण्य में रहते हैं। अब सुनो हाल पाताल लंक का भी, संबंध यहाँ कहते हैं ।।