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रामायण
छन्द (पालक) स्वाद बदले का सभी, अब ही तो है आने लगा। छोड़ दे लघु शिष्य को, किसको यह समझाने लगा ।। जिस तरह तुझको मिले दुःख, काम वह करना मुझे। पीलूगा तड़पा करके इसको, दःख में दिखलाऊं तुझे । तूने सावत्थी नगर में; खिष्ट मुझको था किया। सार यह मत का तुम्हारा, उस बदी का फल लिया ।
दोहा ( सुगुप्त ) लघु शिष्य ने सब सुनी, बातें करके ध्यान । नमस्कार कर गुरु को; बोला मधुर जबान ।।
छन्द (लघु शिष्य) नम्र निवेदन एक मेरा, गुरुजी सुन लीजिये। बन गया अब सूत निरमल को, कपास न कीजिये । सद्धर्म को अर्पण करू सब, स्वाद अब आने लगा। भय गुरुजी इस समय मै, क्षत्रिय कब खाने लगा। गाना नं० ४८ (लघु शिष्य का गुरु स्कन्धकाचार्य को कहना)
आपकी कृपा से अब मै, अपनी सूरत देख ली। मिट गया सारा भ्रम जब, असली सूरत देख ली। थक गया मै ढूढता, लेकिन यह थे परदे नशीन । ज्ञान दीपक से कि अब, परदे में सूरत देख ली ॥२॥ सब अनित्य रंगरूप की, खातिर भटकता मै रहा ।
आनन्द अपूर्व मिल गया जो, थी जरूरत देखली ॥३॥ जिह्वा और माला के दाने, फेरता मुदत रहा। छोड़ दी जब अपने इस, मन की कदूरत देख ली ॥४॥