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रामायण
दोहा ( सुगुप्त) ऐसे कह कर मुनि, फैल गये चहुं ओर ।
नास्तिको के हृदयो मे, मचा अपूर्व शोर । कही दो-दो और कहीं चार-चार, मुनियों ने धर्म प्रचार किया। था मिथ्या भंवर में पड़ा हुआ, बेड़ा कइयो का पार किया । थी आज्ञा आचार्य की, कुम्भकार कट नगर मे आने की। निर्दोष देख स्थान स्वच्छ, सब आसन वहां जमाने की ॥
चौपाई विचरत कुम्भकार कट आये । बाग बीच निज आसन लाये। सुन पालक कुमति दिल धारी। नीच स्वभाव सूअर समवारी ॥ कहे पालक यह मुनि वही आये । बदला लेऊँ कोई करू उपाय। पूर्व बैर कर स्मरण मन मे । जल रहा भीतर द्वेष अग्न मे ।।
दोहा मुनिवर कुछ ही सोचते, पालक सोचे और। होनी ने अपना किया, कर्तव्य महा कठोर ॥ पालक ने चारो तरफ, पहरा दिया लगाय । दारू गोला बाग में, शस्त्र दिये गड़चाय ॥ राजा को कहने लगा, पालक पापी ढोर । राजन क्या सोया पड़ा, त्याग निद्रा घोर ।। नृप कहे मन्त्री किस लिये, इतना है हैरान । रात समय क्यो आये हो, कह दो सकल बयान ।।
राजा नीति यो कहे, करो न पल विश्वास । धोखे में आना नही, चाहे मित्र हो खास ।।