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जटायु पक्षी
३४१ rrrrrrrrrrrrrrrrrrry देख मुनि श्री रामसिया, लक्षमणजी अति हर्षाये है। और उसी समय कर नमस्कार, तोनो ने आहार बहराये है ।।
समागम मुश्किल पाया, चरणन गिर शीश झुकाया । दान देवो मन भाया,खुशी मे आकर देवो ने भी गंधोदक बर्षाया।।
जटायु पक्षी
दोहा अहो दान उद्घोषणा, करे व्योम मे देव ।
भेट करें कुछ राम की, सोचे अमर स्वयमेव ।। अश्व सहित रथ दिया अचित एक रत्नजटी खेचर सुरने । गंधोदक वृष्टी करके सब, देव गये निज निज घरने ॥ यहां बार बार मुनि चरणन मे, रघुपति ने शीश नमाये है। गई फैल वासना गंधोदक की, सभी जीव सुख पाये है ।।
दोहा गंधोदक की वासना, फैली बन मंझार । गंधाभिध नामक पक्षी, के साता हुई अपार ।। साता हुई अपार जिस्म मे, लगी दाह थी भारी पुण्य उदय चल आया, जहाँ थे राम मुनि तपधारी ।। बैठ वृक्ष पर देख रहा था, लम्बी नजर पसारी। जाति स्मरण हुआ ज्ञान, भावना दिल मे शुद्ध विचारी ।।
दौड दृष्टि गई पूर्व जन्म में, तुरत फिर गिरा धरन मे । उठा सीता ने कर मे, मुनि चरणन गेरा पक्षी, था भरा रोग तन पर मे ।।