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निग्रंथ मुनि
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'था उसी समय श्री अतिवीर्य, मुनिराज को केवल जान हुआ। चह पिता देव गया उत्सव पर, संग अनल प्रभ का ध्यान हुआ ।।
चौपाई
उत्सव ज्ञान अधिक प्रकाशा, दया धर्म अमृत मुनि भाषा । मानव देव परिषदा मांही, पूछत प्रश्न एक मुनि राई ।। अबके किस की संख्या आचे, जो मुनि केवल ऋद्धि पावे। कृपया कर कहो अन्तर्यामी, कौन मुनि होगा शिवगामी ।।
दोहा ध्यानस्थ मुनि दो है खड़े, वंशस्थल के पास ।
उन दोनो मुनि जनो को, होगा ज्ञान प्रकाश ।। सर्वज्ञ देव ने फर्माया, कुल भूषण और देश भूपण । शुभ ज्ञान दर्श चारित्र हप, चारो मे नहीं कोई दूषण ॥ . केवल ज्ञान उन्हे होगा यह, अनल प्रभ ने सुन पाया है। और उसी समय क्रोधातुर हो, उपसर्ग देने को आया है ।।
नित्यति करता था यहाँ, शब्द भयानक पान १ और वैक्रिय शक्ति से, लाता था तौफान ।। कई दिवस हो गये किया, उपसर्ग बहुत दुखकारी है। यहाँ केवल ज्ञान मे विघ्न हुआ, विपदा लोगो पर डारी है। अब देख तुम्हे सुन अनल प्रभ, हट गया पिछाड़ी घबराकर। जब शुक्ल ध्यान निर्विघ्न हुआ, केवल प्रगटा हमको आकर ।।
दोहा सुन वाणी सर्वज्ञ की, प्रसन्न चित्त अवधेश । उसी समय चरणन गिरा, साधी सेव विशेष ।।