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श्री स्कन्धकाचार्य चरित्र
दोहा (खंधक । माता तेरे सामने, लई प्रतिज्ञा धार ।
सम दम खम को धारके, करू धर्म प्रचार ।। करूधर्म प्रचार पूर्ण, कर्तव्य सभी कर दूंगा। चाहे सिर कट जाय किन्तु, पीछे नही कदम धरूंगा ॥ सत्याग्रह अनादि नियम, जैन का हृदय यही धरूंगा। धर्म प्रचार के लिये मात, कुर्वान जिस्म कर दू गा ।।
दौड़ मुनि का बाना पाऊ, देश दंडक के जाऊ। धर्म झंडा लहराऊ, अज्ञान अंध मे पड़े जीवों को, सत्य धर्म दर्शाऊं ॥
दोहा ( सुगुप्त) माता ले गई पुत्र को, मुनि सुव्रत स्वामी पास ।
हाथ जोड़ कहने लगी, सुनो प्रभु अर्दास ।। सुनो प्रभु अर्दास, आपको अपना पुत्र देती हूं। मोह कर्म वध का भय मुझको, इसलिये बिरह को सहती हूँ। अव माता पुत्र सम्बन्ध नही, खंधक को अंतिम कहती हूँ। इस कर्म जंग मे अड़कर, पीठ न देना शिक्षा देती हूं ॥
माता गई घर मंझारी, पुत्र ने दीक्षा धारी। लिये महाव्रत सुखकारी, तप जप मे हुए लीन, गुरू के हरदम आज्ञाकारी ॥