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रामायगा- - -
अब मारू एक तान शक्ति इसको, पर भव पहुंचा देऊ। जो शक्ति इसका नाश करे, पहिले वह इसे दिखा देऊ ।
दोहा (शत्रुदमन) जो शक्ति सहनी पड़े, उसको जरा पहिचान । परभव को पहुंचायगी, जिस दम भारी तान ।।
दोहा (लक्ष्मण) सह सकता हूँ पॉच मैं, कौन चीज है एक ।
परीक्षा अब कर लीजिये, खड़ा सामने देख ॥ फिर क्रोधातुर हो अति भूप ने, शक्ति हाथ उठाई है।
और देख सूरत उस लक्ष्मण की, जनता सारी घबराई है ।। यह देख वार्ता एक दम सब, लक्ष्मण जी को समझाते हैं । और बोली पा उधर पिता से, क्यों यह प्राण गंवाते है ।। वस यही हो चुका पति मेरा, इसके संग शादी कर दीजे । न व्याहू और किसी को भी, यह शक्ति हाथ से धर दीजे ॥ जैसे घी डाला अग्नि में, भूपाल को ऐसे क्रोध चढ़ा। निज शक्ति लाकर सभी, अनुज पर राजा ने प्रहार जड़ा । किये दो प्रहार भुजाओ पर, और दो हाथो पर मारे हैं लख आश्चर्य मे भूप हुआ, हैरान सभासद सारे है। सोचा कि कहता दूत किन्तु, यह दूत नजर नहीं आता है ।। यह शक्ति में बलवीर अतुल, जो तनिक नहीं घबराता ।।
दोहा मन ही मन मे भूप को, आश्चर्य हुआ अपार । मुस्काता हुआ इस तरह, बोला वचन उचार ।। प्रहार पांचवां अय लड़के, हम तुझे माफ फर्माते हैं। तव बोले अनुज क्यों मेरे, क्षत्रापन को वट्टा लाते है ।