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शत्रु दमन प्रतिज्ञा
शत्रु दमन प्रतिज्ञा
छन्द
भेद सब एक मनुष्य से श्री अनुज ने पूछा तभी । वृत्तान्त यह उस पुरुष ने लक्ष्मण को समझाया सभी ॥
शत्रु दमन राजा यहां, शक्ति का न कोई पार है ।
भूप है आधीन कई, सब का यही सरदार है || है जित पद्मा पद्मनी, प्रत्यक्ष पुत्री भूप की । तुलना न कर सकता कोई, उस पुण्य रूप अनूप की || मेरी शक्ति का बार अपने तन पर सह लेगा कोई ।
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जित पद्मा मेरी पुत्री को, फिर विवाहेगा वही ॥ आज तक आया न कोई, सहने को शक्ति भूप की । मौत के बदले कोई, करता न चाहना रूप की ॥ सुन अनुज लाई चोट, धौसे पर करी न वार है । फिर वहां पहुॅचे लगा था, खास जहां दरबार है ॥ देखी शोभा अनुज की, वांकी श्रदा का जवान है । शत्रु दमन कहने लगा, मुझ को बता तू कौन है ॥ कहे लखन दूत मै भरत का स्वामी के आया काम हूँ । प्रतिज्ञा पूरी करने तेरी, आ गया इस धाम हॅू ॥
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दोहा
क्रोध भूप को आ गया, सुना दूत का नाम । राज पुत्र बिन और को, विवाहना अनुचित काम ||
यह होकर दूत भरत का, मेरी पुत्री ब्याहने आया है । तो समझ लिया मैने अब इसके, काल शीश पर छाया है ॥