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रामायण
दोहा श्रीराम ने लक्षमण से कहा, देखो सब रंग ढग । जल्दी आकर के कहो, चले फेर हम संग ॥
यह कथन सुन श्रीराम का, लक्षमण जी देखन को चला। दो मुनि आये नजर, कुछ और ना वहां पर मिला ।। लक्षमण ने आकर हाल जो, देखा था सब बतला दिया। श्रीराम ने मुनियो के जा चरणो से डेरा ला लिया ।।
दोहा विधि सहित वन्दना करी । पांचो अङ्ग नमाय ।। कुछ दूरी पर द्रुम तले, बैठे प्रासन लाय ॥ श्रीराम बजाते हैं वीणा, लक्ष्मण सुरताल उच्चार रहे । उस जंगल मे हो रहा मंगल, निज शुक्ल ध्यान मुनि धार रहे ॥
अनल प्रभसुर ने रात्रि में, रूप भयङ्कर किया भारी। तूफान सहित सुर शब्द भयानक, करता आ रहा दुखकारी ॥
दोहा मुनियों को देने लिये, दुख अाया बैताल ।
रूप भयानक अति वुरा, जैसे कोपाकाल ।। श्रीराम सिया लक्ष्मण बैठे है, पुण्य प्रताप प्रचण्ड बड़ा । सर सह ना सका उस तेजी को, इस कारण उल्टा कदम पड़ा । शुभ शुक्ल ध्यान शुद्ध होने से, मुनिजन को केवल जान हुआ। जहाँ उत्सव करने सुरपुर से, देवो का आवागमन हुआ।। करके ज्ञानोत्सव देव सब, निज निज स्थान सिधाये हैं। फिर विधि सहित कर नमस्कार, सियाराम ने शीश नमाये है ।।