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________________ शत्रु दमन प्रतिज्ञा शत्रु दमन प्रतिज्ञा छन्द भेद सब एक मनुष्य से श्री अनुज ने पूछा तभी । वृत्तान्त यह उस पुरुष ने लक्ष्मण को समझाया सभी ॥ शत्रु दमन राजा यहां, शक्ति का न कोई पार है । भूप है आधीन कई, सब का यही सरदार है || है जित पद्मा पद्मनी, प्रत्यक्ष पुत्री भूप की । तुलना न कर सकता कोई, उस पुण्य रूप अनूप की || मेरी शक्ति का बार अपने तन पर सह लेगा कोई । 9 ३३१ जित पद्मा मेरी पुत्री को, फिर विवाहेगा वही ॥ आज तक आया न कोई, सहने को शक्ति भूप की । मौत के बदले कोई, करता न चाहना रूप की ॥ सुन अनुज लाई चोट, धौसे पर करी न वार है । फिर वहां पहुॅचे लगा था, खास जहां दरबार है ॥ देखी शोभा अनुज की, वांकी श्रदा का जवान है । शत्रु दमन कहने लगा, मुझ को बता तू कौन है ॥ कहे लखन दूत मै भरत का स्वामी के आया काम हूँ । प्रतिज्ञा पूरी करने तेरी, आ गया इस धाम हॅू ॥ " दोहा क्रोध भूप को आ गया, सुना दूत का नाम । राज पुत्र बिन और को, विवाहना अनुचित काम || यह होकर दूत भरत का, मेरी पुत्री ब्याहने आया है । तो समझ लिया मैने अब इसके, काल शीश पर छाया है ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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