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भीलनी
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चोरो ने वालिखिल्य नप से, यह अपनी रड़क निकाली है। एक इसका ही क्या जिकर करे, वैश्यो पर विपदा डाली है।।
दोहा परोपकारी चल दिये, विपमस्थल की ओर । चलने को तैयार थे, उधर महा भट चोर ।। राम जिधर को जा रहे, केंटक तरु अति भूर । रास्ता न कोई मिले, जाते मार्ग चूर ।। शकुन अपशकुन गिनते नहीं, गिने न वाट कुबाट । दुर्बल को यह सोच है, बलिजन उज्जड़ बाट 14 सेना चोरो की प्रबल, शूर वीर बलवान ।
देश लूटने को चले, मिले सामने आन ।। देख सिया का रूप तरुण, सेनापति हुक्म सुनाता है। देखो हीरे का टुकड़ा, यह आज सामने आता है। अतुल अनुपम रूप हमे, यह जगदम्बा ने भेजा है। राज खजाने तुच्छ सभी, बस ये ही जान कलेजा है।
दोहा आज्ञा पाते ही कई, बढ़े अगाड़ी शूर । हसते-हंसते जा रहे, दिल मे अति गरूर ॥ जा पहुंचे जब पास सम के झट शस्त्र चमकाये हैं। उधर रामलक्ष्मण ने भी, निज धनुप बाण उठाये है। तब कहे अनुज हे भ्रात रहो, तुम सिया पास हुशियारी से। करता हूं नाश अभी इनका, ज्वाला को जैसे वारिसे
दोहा आज्ञा पा श्रीराम की, लक्ष्मण बढ़े अगार। धनुष अत्यचा खैच कर, किया एक टंकार ॥