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चनमाला
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दोहा खली आंख सिया राम की; देखी सन्मुख नार । लक्ष्मण ने फिर कह दिया, सभी बात का सार ।। सिया राम को हर्ष हर्ष मे बनमाला शीश झुकाती है। और अगला पिछला हाल सभी, निज भेद खोल दर्शाती है। सतोप दिलाकर श्रीराम ने, सीता पास बैठाई है। अब उधर महल मे, वनमाला की मात अति घबराई है।
दोहा
बनमाला हा कहां गई रानी करी पुकार ।
शोर एकदम से मचा, महलो के मझार ।। सुना हाल जब राजा ने, जैसे हृदय मे बाण लगा। सब मारे मारे फिरते है, सेवक कोई महलों फिरे भगा।
और खडे सिपाही जगह-जगह, पल्टन सब तर्फी फैल गई। जिम्मेवारी थी जिन जिनकी, उन सबकी तबियत दहल गई। सब फिरे गुप्तचर जगह-जगह, अब लगी तलाशी होने को।
और दूर दूर कई दिये भेज, जहां मिले रास्ते टोहने को ।। कुछ सेना निज साथ लई, राजा जंगल की ओर बढ़ा। चहा पास सरोवर वृक्ष तले, कुछ इष्ट चिह्न सा नजर पड़ा। थे दो अलबेले शूर एक बैठा, और दूसरा पास खड़ा। फिर नजर पड़ी वनमाला पर जब, राजा आगे और बढ़ा ।। चनमाला है विश्वास हुआ तो, भूप अति मुझलाया है। पकड़ो इनको आगे बढ़कर, योद्धो को हुक्म सुनाया है ।। चस चर्म उड़ा दो मार मार, जब तक न सत्य बतायेंगे। यह दुष्ट चोर डाकू जन, अपने कर्मो का फल पावेगे।
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