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वनमाला
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देख मनुष्य को चमक पड़ी, किसने आ फांसी खोली है। कोई नकली बना समझ लक्ष्मण, बनमाला ऐसे बोली है ।।
दोहा (बनमाला) कौन यहाँ तू छिप रहा, आन किया मोहे तंग ।
इस असली रग पे तेरा, चढ़े न नकली रंग ॥ चढ़े न नकली रंग, खड़ा क्यो बाते बना रहा है। चले न तेरे दम गजे क्या पट्टी पढ़ा रहा है। बनवास गये है राम लखन, किसको बहकाय रहा है। जली हुई को मुझे कौन तू , आकर जला रहा है।
दौड़
प्रण हित मरना ठाना है, प्राण यह तुच्छ जाना है। नही त्यागूगी निश्चय 'अपना , शील धर्म के सिवा नही मुझको कोई भी शरणा॥
दोहा ( बनमाला ) अलग जरा हट जाइये, मुझे नहीं कुछ होश । फांसी लेने दीजिये, रहे आप खामोश ॥
गाना नं.४३
(बनमाला का ) क्यो रोकें मुझे, मै सताई हुई हूँ।
तपे जिगर से दिल, जलाई हुई हूँ ॥ १ ॥ तुझे जिसकी चाहना, नही वह यहाँ पर ।
यह मुर्दा जिस्म, मै उठाई हुई हूँ॥२॥ जावो यहाँ से न, हमको सतावो।
रंजो अलम् की दुखाई हुई हूं ।। ३ ।।
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