________________
वनमाला
३२७ rrrrrrrrrrr
AAAAAAA
rrrrrrrrrrrrr
जाता हूँ संधि परस्पर दोनो की मै करवाय दू। यदि माना नहीं अतिवर्य तो, फिर मान सब गिरवाय दू ।। 'सुन राम बोले बात यह, हमको नहीं मंजूर है। सब विकल चित बनता वहां, जहां पर बजे रणतूर है ।।
दोहा (राम) हम जाते है उस जगह, पुत्र तेरा ले साथ ।
आप कष्ट ना कीजिये, है स्पष्ट यह बात ॥ क्या शक्ति थी नट जाने की, झट वचन भूप ने मान लिया।
कुछ सेना राम ने कुवर सहित, ले उसी तरफ प्रस्थान किया । ___ हम आते है अतिवीर्य को, लक्ष्मण ने पत्र पठाया है। और नगरी नंदा वर्त पास, जा तम्बू डेरा लाया है ।
दोहा देवी उस उद्यान की, कहे राम से आन । मुझ को भी कर दीजिये, आज्ञा कोई प्रदान । तुम लायक कोई काम न, बोले राम नरेश । तब देवी कहने लगी, कुछ तो देवो आदेश ।। , यदि प्रवल इच्छा तेरी, तो कर इतना काम । सेना सब ऐसे लगे, जैसे नार तमाम।। फौज जनानी कर दई देवी ने तत्काल ।
आश्चर्य मे लीन हो, जो कोई देखे हाल ॥ तब अतिवीर्य ने सुना फौज, आई तो अति हर्षाया है। और किया पूर्ण विश्वास महीधर, मदद हेत खुद आया है ।