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रामायण
लगा पता फिर थोड़ी सी. कुछ फौज जनानी भेजी है। वह देख हाल अतिवीर्य को, आई झट अतितर तेजी है ॥ उपहास्य किया कोई कहे, महीधर भेजी फौज जनानी है। विश्वासघात किया कोई कह, कृतघ्नता दिल में ठानी ।। फिर अतिवीर्य ने मन्त्री जन को, ऐसा हुक्म सुनाया है। सब वापिस करदो सेना, यह क्या दुष्ट ने स्वांग रचाया है। फिर द्वारपाल ने आकर के, इतने मे अर्ज गुजारी है । सब फौज जनानी तेजो से, घुस रही नगर मंझारी है। घृत सिंचित अग्नि जैसे, एक दम से लपट दिखाती है। या यो समझो जैसे लकड़ी, जल भुन कोयला बन जाती है ।
दोहा यो जल भुन कर भूपाल ने, आज्ञा दी तत्काल ।
अर्धचन्द्र धक्का देवो, सब को बाहर निकाल । जब सुभट गये धक्के देने, तो उधर मोर्चा अड़ा खड़ा। अब लगी लड़ाई होने वहां, कहीं शीश और धड़ कहीं पड़ा। हो रहा घोर संग्राम जहां, नृप हस्ती पर चढ़ आया है। उस नारी फौज का देख तेज, अतिवीर्य दिल घबराया है । फिर अतिवीर्य ने ललकार दई, आगे निज कदम बढ़ाये हैं। अब फेर हौसला किया शूरमे झूझ एकदम आये है। उधर शूरमा ललकारे, टङ्कार धनुष लक्ष्मण लाया । मैदान छोड सब फौज भगी, नृप लक्ष्मण के काबू आया ॥
छंद केश पकड़े अनुज ने बांधा है, मुश्क चढ़ाय के। जा राम पे हाजिर किया, बाकी भगे घबराय के ॥