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रामायण
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चौपाई (दूत) काम पड़े पर करे सहाई, सोही मित्र जगत के माहीं। विपद समय करे, टालमटोला, सो तो पोल ढोल सम बोला
दोहा मन में सोचा भूप ने, बने किस तरह काम । हॉ ना कर सकता नही, बैठे लक्ष्मण राम ।। महीधर पड़ा विचार में, बोल उठे श्रीराम !
अहो दूत कहो किस लिये, लगा होन संग्राम ।। 'कहे दूत महाराज समझ, मेरी मे ऐसा आता है।
नृप अतिवर्य बलवान, भरत को आन मनाना चाहता है। निर्भय स्वामी बलवान् हमारा, भरत भूप कोई चीज नहीं।। है देर इन्ही के जाने की, शत्रु का मिलना बीज नहीं।
दोहा बुद्धिमान् शत्रु भला, शठ मित्र दुखदाय । जैसे नीम से रोग क्षय, प्राण की पाक से जाय ।। कहे दूत से महीधर, दल बल कर तैयार । आते हैं जा कर कहो, रण भूमि मंझार ॥
छन्द दूत भेजा उधर को, फिर राम से कहने लगा। समझाके आऊं मित्र को, विश्वास यों देने लगा ।। शठता करी अतिवीये ने, जो भरत से झगडा किया। वाघने विग्रह का मानो, सिंह को न्यौता दिया । मर्म कुछ जाना नहीं, युद्ध भरत से करने लगा। जिनका हूं मैं सेवक मदद, मुझसे ही फिर चाहने लगा।