________________
यक्ष सेवक
दोहा
"
मन वान्छित श्रीराम ने दिया कपिल को दान | खुश हो कपिल ने किया, निज मुख से गुणगान ॥ खुशी खुशी निज ग्राम गया, कपिल समृद्धि पा करके । जहां भोगे सुख अनेक धर्म, संध्या मे ध्यान जमा करके || फिर सोचा किंचित् किया, धर्म जिसने यह कष्ट निवारा है । सम्पूर्ण धर्म यदि ग्रहण करें, तो खुल्ला मोक्ष द्वारा है | '
॥
MPANI
दोहा
समझ लिया संसार मे है सब वस्तु निस्सार । संयम बिन होगा नहीं, श्रात्म का उद्धार ॥
तजा सभी ससार धार, सयम निज आत्म काज किया । उस तरफ राम सिया लक्ष्मण ने वहां ही पूरा चौमास किया ॥ जब चलने को तैयार हुवे, फिर यक्ष वहाँ पर आया है । स्वय प्रभा नामक हार देव ने, राम को भेट चढ़ाया है || रत्न जडित कुण्डल जोड़ा, श्री लक्ष्मण को शोभाता है । और चूड़ामणि, सिया के मस्तक, ऊपर चमक दिखाता है || वर वीणा चौथी दई देव ने, इच्छित राग मिले जिसमे । सब साजा सहित अद्भुत, गुणदायक अरति दूर हटे जिससे ||
दोहा
पुण्यवान जहां पर बसे, मिले समागम आय । श्रीराम आगे बढ़े, नगर गया विलय ||
1 r
३१५
नगर गया विरलाय, सफर दर सफर रोज जारी है । करे वहाँ विश्राम जहां, थकती सीता प्यारी है ॥