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वज्रकरण सिंहोदर
श्रीरामचन्द्र के पास अनुज, नृप की मुश्कें कस लाया है । और आदि अन्त पर्यन्त सभी, रण का वृत्तान्त सुनाया है ॥ श्रीराम सिया और लक्ष्मण हैं, यह भेद सिंहोदर पाया है । फिर बारम्बार क्षमा माँगी, चरणो मे शीश झुकाया है || दोहा ( सिंहोदर )
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क्षमा मुझे अब कीजिये, यही मेरी अरदास । राजपाट सबै आपका, मैं चरणो का दास ॥ (राम) - बोले राम सुनो अच्छा, अब मेंट सभी बखेड़ा यह । दोनो के राज्य मिला करके, बस धर्म अर्ध निबेड़ा यह || सेवक मालिक नहीं कोई, अब दोनो भ्रात बराबर के । है यदि तुम्हे मंजूर फैसला, करू' कहूँ समझा करके ||
दोहा
सिंहोदर और वज्रकरण, गिरे चरण मे आनं ।
हमे सभी स्वीकार है, जो भाषा भगवान ॥
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श्रीराम ने कुण्डल मंगवाकर विद्युत अंग के हाथ दिये । और बना दिया अधिकारी नृप ने, सब नगरो के नाथ किये ॥ फिर बोले राम से सिंहोदर, एक बात आपसे चाहता हूँ । हे नाथ करे मंजूर मै निज पुत्री, लक्ष्मण को विवाहती हूं || दोहा ( राम )
लक्ष्मण से लो सम्मति, यों बोले श्रीराम ! यदि लखन जी मान ले, बने तुम्हारा काम ॥ लक्ष्मण जी से फिर कहा, सिंहोदर ने आन । सुनते ही फिर अनुज यो, बोले मधुर जबान ॥