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वज्रकरण सिंहोदर
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इस झगड़े का भेद कही, यदि भरत भूप सुन पावेगा। मिल जाय धूल मे सब शक्ति, और जान माल से जावेगा।
दोहा लक्षमण का प्रस्ताव सुन, तड़प उठा भूपाल ।
कौन है तू मुझको बता, बोला आंख निकाल | हृदय नेत्र दोनो के अन्धे, किसको धौंस दिखाई है। करी मिसाल वही लाडो की, भूआ बन कर आई है ॥ भरत भरत कर रहा बता, क्या नाता लेकर आया है। जिसका कोई सम्बन्ध नहीं, उसका प्रसङ्ग चलाया है। धुर से है मातहत हमारे, भरत क्या इसका मामा है । यह धौस वृथा क्यों दिखलाई, यहाँ क्षत्रिय कुल का जामा है। सब मान भंग करके इसका, चरणो मे आज गिराऊंगा। क्यों तेरी भी होनी आई, परभव इसको पहुँचाऊंगा ।।
दोहा सुनी काट करती हुई, बात सुमित्रानन्द । गर्ज तजे कहने लगा, बांका वीर बुलन्द ॥
(लक्ष्मण) नीच भाव राजन् ! तेरे, मै भी तो दूत भरत का हूं। नाग पवतिया दिया छेड़ मै, नहीं वीर गफलत का हूं ।। मान सभी मर्दन करके, अन्याय का मजा चखाऊंगा। जो वचन कहे मुख से पूरे, बिन किये न यहाँ से जाऊंगा।
छन्द (लक्ष्मण) है खेद इस अन्याय पर, क्षत्रिय का तू जाया नहीं। धर्मी को तैने दुःख दिया, कुछ भय भी मन लाया नहीं ।।