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वज्रकरण सिंहोदर
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सिंहोदर ने भेज दुत नप को, यह वचन सुनाया है। अवकाश नहीं तुमको बचने का, हमने घेरा लाया है ।। मुद्रि हटा गिरो चरणन मे, जान बचाना चाहते हो। । किस कारण फस कर धर्म, भ्रम, मे जान माल से जाते हो।
दोहा (वज्रक.) वज्रकरण उत्तर दिया, सुन लीजे दरख्वास्त ।
राज पाट धन माल की, मुझे नही है ख्वास ।। देव गुरु को छोड़, नहीं नमने का सिर मेरा है। रस्ता दीजे तजू देश, यदि कोई हर्ज तेरा है ।। क्यो दुःख देते प्रजा को, ला चहुँ ओर घेरा है । तजून हरगिज धर्म, जब तलक दम मे दम मेरा है ।।
दौड़ नियम अपना नहीं तोडू', और सब कुछ ही छोडू।। क्षत्रिय कहलाता हूं, नहीं हारूगा धर्म नर्म, वचनों से समझाता हूँ।
दोहा (पथिक) उत्तर सुन सिंहोदर को, चढ़ा रोष विकराल । मारे बिन छोडू नहीं, कहे वचन भूपाल ।
छन्द (पथिक) लूट प्रजा को लिया, लाई कहीं पर आग है । छोड़ कर घर बार नर, नारी समूह गया भाग है ।। लूट निधन कर दिये, धनी क्या सभी नर नार है। मेरा भी सब कुछ खुस गया, बस माल और घरबार है ।। उजाड़ हुआ तत्काल का, यह समृद्धिशाली देश है। वस्त्र भी मेरे खुस गये, बस रह गया यह खेस है।